फतेहगढ़ साहिब के लखनपुर गांव में प्रवासियों के खिलाफ प्रस्ताव पारित, बिना पहचान पत्र वालों को गांव छोड़ने का अल्टीमेटम
पंचायत का कहना है कि ग्रामीणों को प्रवासियों द्वारा परेशान किया जा रहा है
यहीं नहीं, गांव के रजवाहों के पास की ज़मीन पर प्रवासियों ने कब्ज़ा कर लिया
अब तक किसी प्रवासी समुदाय की औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है
सात दिन का समय दिया है वे या तो पहचान पत्र पेश करें या गांव खाली करें
हालांकि, स्थानीय लोग इसे सुरक्षा और कानून व्यवस्था से जुड़ा मुद्दा बता रहे हैं
फतेहगढ़ साहिब (पंजाब)।
पंजाब के फतेहगढ़ साहिब ज़िले के लखनपुर गांव में ग्राम पंचायत ने एक अहम और विवादास्पद निर्णय लेते हुए बिना पहचान पत्र वाले प्रवासियों को गांव छोड़ने का आदेश दिया है। पंचायत द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुसार, प्रवासियों को एक सप्ताह के भीतर गांव खाली करने का समय दिया गया है। पंचायत का कहना है कि ग्रामीणों को प्रवासियों द्वारा परेशान किया जा रहा है। गांव के रजवाहों के पास की ज़मीन पर प्रवासियों ने कब्ज़ा कर लिया है। इस घटनाक्रम पर अब तक किसी प्रवासी समुदाय की ओर से औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। हालांकि, मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की निगाहें इस फैसले पर टिक गई हैं, और आने वाले दिनों में यह मामला विवाद और प्रशासनिक हस्तक्षेप की ओर जा सकता है।
प्रवासियों ने किया ज़मीन पर कब्ज़ा
पंचायत का कहना है कि गांव में रह रहे कुछ प्रवासी गांव की रजवाहों (सिंचाई नहरों) के पास की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा कर चुके हैं। साथ ही, स्थानीय लोगों ने शिकायत की है कि उन्हें इन प्रवासियों के व्यवहार से परेशानी और असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। इन्हीं कारणों को आधार बनाकर यह प्रस्ताव पास किया गया है। पंचायत के अनुसार, यह कदम गांव की सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाया गया है।
कोई आधिकारिक बयान नहीं आया
पंचायत ने प्रवासियों को सात दिन का समय दिया है ताकि वे या तो अपना पहचान पत्र प्रस्तुत करें या गांव खाली करें। चेतावनी दी गई है कि इसके बाद कानूनी कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, इस फैसले को लेकर प्रशासन या पुलिस की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। ग्राम पंचायत के अनुसार, जिन प्रवासियों के पास कोई वैध पहचान पत्र नहीं है — जैसे कि आधार कार्ड, राशन कार्ड, या कोई सरकारी दस्तावेज — उन्हें गांव में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
मानवाधिकार संगठनों की नजर
यह मामला अब मानवाधिकार संगठनों की निगाह में भी आ गया है, जो इसे प्रवासियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण रवैया मान सकते हैं। यह निर्णय स्थानीय सुरक्षा और प्रशासनिक नियंत्रण के तर्क के साथ लिया गया है। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या पंचायत का यह निर्णय कानूनी रूप से मान्य है, और क्या प्रशासन इस पर अमल करवाएगा या नहीं। हालांकि, स्थानीय लोग इसे सुरक्षा और कानून व्यवस्था से जुड़ा मुद्दा बता रहे हैं।
प्रशासन की भूमिका स्पष्ट नहीं
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, ग्राम पंचायतों को कुछ सीमित प्रशासनिक अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन किसी व्यक्ति को केवल पहचान पत्र न होने के आधार पर गाँव से बाहर निकालने का अधिकार संविधान या कानून नहीं देता। इस तरह के मामलों में स्थानीय प्रशासन को हस्तक्षेप कर जांच करनी पड़ती है ताकि किसी समुदाय के साथ भेदभाव या मानवाधिकार उल्लंघन न हो। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है।